चम्बल की माटी का अमर कवि राम प्रसाद बिस्मिल - लेखक - विशेन्द्र पाल सिंह जादौन

चम्बल की माटी का कवि अमर शहीद श्री रामप्रसाद बिस्मिल

(लेखक - विशेन्द्रपालसिंह जादौन)

सरफरोसी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजु ऐ कातिल. में है।।
-बिस्मिल

महान क्रान्तिकारी सपूत, शहीद श्री रामप्रसाद बिस्मिल जी के जीवन की, जीवन को जीवंत घटनाओं के सन्दर्भ में जोड़ा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी जिस तरह से सावन में उमड़ती नदियाँ सम्पूर्ण बेग के साथ बहती है उसी तरह रामप्रसाद बिस्मिल जी का जीवन सरस और संघर्ष का नाम है जहां अपनों से घृणा अविश्वास मिला वहीं बिस्मिल जी ने कविता की धारा में स्वयम् को साधक पाया उन्होंने मन की लहर के आत्म निवेदन में कहा है कि मेरा कई बार का अनुभव है, जब कभी में संसार यातनाओं पे्रमवासियों तथा विश्वास घातियों की चालों में दुखित हुआ हूँ और बहुत ही निकट (संभव) था कि सर्वनाशकर लेता, किन्तु, प्राण प्यारी रचनाओं ने ही मुझे धैर्य बंधाकर संसार यात्रा की कठिन राह चलने के लिए उत्साहित किया उन्होंने लिखा कि मैं कोई कवि नही और न कविताओं के कार्य को ही जानता हूँ-जिस युवा कवि के दिल में देश प्रेम और देश की आजादी के सपने थे, जिसने आजादी के लिए हाथों में रिवाल्वर के सिवाये कुछ नहीं पकड़ा हॉ उसी सपूत ने हल की मुठियाँ के साथ-साथ कलम के जादुई चमत्कार से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये मन की लहर रचना संग्रह में कवि श्री रामप्रसाद बिस्मिल जी ने आह्वान, आर्य क्यों दुखी है युवा सन्यासी, धर्महित मरना, हकीकत के वचन, मेरी भावना, संदेश है, वही कवि ने समाज के लिए उन्होंने लिखा है कि–
भारत हकीकत एक है, आज अत्याचार से।
होंगे हकीकत सैकड़ो, इस रुधिर की धार से।।
प्रिय जाति के सम्मानहित, निज प्राण देना धर्म है।
तन देश वेदी पर चढ़ाना, परम पावन धर्म है।।
धिक्कार है वह जन्म, जिससे जाति का कुछ हित न हों।
उस मृत्यु को धिक्कार है, जो निज देश का सेवाहित न हो।।
मेरी भावना शीर्षक की रचना में कवि बिस्मिल ने लिखा है-
न चाहूं मान दूनियाँ में, न चाहूं स्वर्ग का जाना।
मुझे वर दे यदी माता रहूँ भारत पर दीवाना।।
करूं मैं कोम की सेवा, पड़े चाहे करोड़ो दु:ख
अगर फिर जन्म लूं आकर, तो भारत में ही हो आना।
लगा रहे प्रेम हिन्द में, पढूँ लिखूं हिन्दी
चलना हिन्दी बोलूं हिन्दू पहनना ओढ़ना, खाना,
भवन में रोशनी मेरे, रहे हिन्दी चिरागों की
क्रांतिकारी सपूत के राष्ट्र भक्तों की जाति, धर्म और भाषा के बलिवेदी पर एक सैनिक की तरह जियें और निश्च्छल मन के साथ हृदय की पवित्रता को इस प्रकार अभिव्यक्त किया है।
मुरझा तन था निश्च्छल मन था, जीवन ही केवल वन था मुसलमान हिन्दू मन छोड़ा, बस निर्मल अपना पन था।
‘मन्दिर में था, चॉद चमकता मस्जिद में मुरली की तान मक्का हो चाहे वृन्दावन, होते आपस में कुर्वान गली-गली में अली-अली की,
गूंज मचाते हिल-मिलकर।
मार जाते कर उठाते,
हृदय चढ़ाते खिलखित कर चिन्ता होवे न कलंकित हिन्दू धर्म पार इस्लाम गांव दोनो सुध-बुध खोखरा,
या अल्ला जय-जय घनश्याम।
कवि ने फिर मेरा जन्म,मेरी प्रतिज्ञा, जीवित जोश, स्वाधीन कैदी, मातृभूमि, वियोग मातृवन्दना, विनय आदि रचनाओं में राष्ट्र प्रेम अंग्रेजी हुकूमत में जेलों में यातनापूर्ण जिन्दगी को स्पर्श करने वाली रचनाओं में जहां युवा पीढ़ी के लिए सन्देश दिया है वहीं मातृ भूमि के लिए शहीद की भावना और वन्दना भी इन पंतियों मे उल्लेखित है।
‘तेरे ही काम आऊहं मेरा ही मंत्र गाऊं।
मन और देह पर बलिदान में चढाऊं।।
जहाँ कवि ने राष्ट्र संदेश का गान किया है वही प्रकृति के प्राकृतिक सौन्दर्य ‘फूल कविता के माध्यम से अभिव्यक्त किया है बेकफन, स्वतन्त्रता गाना आहें-सर्द (अपमान), मातम रोना, कैदी बुल-बुल की फरियाद आदि रचनाओं में क्रान्ति का शंखनाद परिलक्षित है कवि ने देश की यातना पूर्ण जीवन को सरलतम शब्दों में व्यक्त किया है।
ईश्वर विनय में कवि ने लिखा है-
बरसे हजारों बीते दु:ख रहते-सहते हमको, क्या भाग्य में हमारे बिल्कुल दया नहीं है।
हम गिर गये है इतने हस्ती मिटी हमारी।
क्यों हाथ वह दया का, अब तक उठा नहीं है करते थे राज्य हम ही,
संसार भर एक दिन, फूटे जो भाग्य अपने घर तक रहा नहीं है।
उन्होने सम्पूर्ण देश की स्थिति की प्रार्थना ईश्वर से की है वे पक्के आस्तिक और ईश्वरवादी क्रांतिकारी पुरूष के रूप में लिखा है-
सदियों से जन्म भूमि, जो दु:ख उठा रही है।
फिर कवि ने ‘भारत मेरा कौल (प्रतिज्ञा) में लिखा है।
सजा को जानते है हम
खुदा जाने खाता क्या है।
ना बिस्मिल हूँ मैं बाकिफ नहीं, रस्में शहादत से,
बतादें अब तू ही जालिम तड़फने की अदा क्या है
उम्मीद मिल गई मिट्टी में दर्द जब्त आखिर है
सदाऐं गैब (आकाशवाणी) बतलाऐं
मुझे हुक में खुदा क्या है।
अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल जी ने आप बीती आहे सर्द, बलिदान शीर्षक रचनाओं में इधर हमारे उधर, हिन्दोस्तां हमारा, विश्वास के अन्त, मादरे हिन्द की आवाज सत्ता, ईर्ष्या पर तीखी कलम में लिखा है, अंग्रेजी हुकूमत को कोसा ही नहीं है बल्कि उनकी कलम में लिखा है-
जिन्हें मैंने दूध पिला दिया,
बसे आस्तीन के सांप वो,
कोई मेरे बच्चे को डस गया,
कोई मुझ पर जहर उगल गया,
उनकी कलर फिर गजल की तरफ बड़ी और उसमें उन्होंने दुखानन्द, सच्ची प्रतिज्ञा मौजूदा हालत, विश्वासघात, अरमाने दिल, पक्षी पुकार आदि शीर्षक की गजलें सदाए-दर्द देशपे्रम दर्देदिल, नार ए गम हिन्दोस्तां हमारो आदि गजले उस जमाने में प्रत्येक क्रान्तिकारी की जुवां पर गुनगुनाती जिसमें कवि ने समाज व देश की स्थिति की चिन्तन पूरी निष्ठा व ईमानदारी से किया है।
‘जो हवाऐं दहर बदल गई तो,
जहां का रंग बदल गया
जो दरख्त फूल के फल गया
झूंठ जो चीज है उससे मुहब्बत कैसी,
खाक हो जाये दम भर में वह सूरत कैसी
न तथा मालूम वह जालिम।
हमें इतना सतायेगा,फंसाकर दामें उलफत में
हमें बन्दा बनायेगा।
छुड़ा करके वतन हमसे, बनायेगा हमें कैदी,
दिखाकर आबोदाने को, कफरा मे हमको फंसायेगा,
बनाने को हमें कैदी, बनेगा बाग की माली
छिपाकर शक्ल असली को, शकल दीगर दिखायेगा।
समझकर नातुर्बा हमको करेगा इतनी लज्जादी।
जलाकर बालों पर सारे हमें, बिस्मिल बनायेगा।
हिन्दोस्तां की आवाज कवि ने इन पंतियो में लिखी है।
मेरे गम की है कहानी मुझे, किसी साख वां न समझो
बड़े शोक से उडादो मेरे, तनके टुकडे-टुकडे
न रूकेगा जज-बये दिल, मुझे बेजवां न समझो
कोई समझना उन्हें ट्टट्टदिल को बहनाना कोई।
पिछले इतिहासो को पढ़-पढ़ के सुनना कोई।
जब तलक लौटू पिता-माता को संतुष्ट करें
प्यारी प्रजा का कभी दिन न दुखाना कोई
कवि न आहें, सर्द दिल में लिखा है–
हिन्द में आह! चली उलटी हवायें क्यों कर।।
है कभी ताऊ न, कभी कहत कभी है जा है,
न नहीं मालूम टलेगी में बतायें क्यों कर!
क्या कलम जाने जो है गूंज में ।
भौंरे के मजा,
गौरे तसलीम करें,
नालों की राय क्यों कर
कवि ने हिन्दोस्तां हमारा में लिखा है –
है दोस्तों हमारो, हिन्दोस्तां हमारा,
है स्वर्ग से भी बढ़कर, प्यारा वतन हमारा
पहरे में है हमारे इतना बड़ा समन्दर ।
कोहे हिमालय भी पासवां हमारो
कवि विस्मिल को 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गई तथा जेल की कोठरी में उन्होने राष्ट्रीय चिंतन और देश प्रेम की रचनाये लिखी जिनमें प्रमुख इस प्रकार है।
मिटगया जब मिटने वाला, फिर सलाम आया तो क्या ।
दिल की बरबादी के बाद, उनका पयाम आया तो क्या ।
काश! अपनी जिन्दगी में, हम यह मन्जर देखतें,
यूं सरे तुखत कोईद्व महशर खराम आया तो क्या।
मिट गई सारी उम्मीदें मिट गये सारे ख्याल
उस घड़ी पर नामवर, लेकर पयाम आया तो क्या।
अै: दिले, नाकाम मिट जा, अब तू कूंचेयार में,
फिर मेरी नाकामियों के बाद, काम आया तो क्या ।
आखिरी शबदीद से काबिल थी, बिस्मिल की तड्फ सुबह दम गर कोई बालये आप आया तो क्या ।
फिर आगे कवि ने लिखा है -
गर हालत में है मेरी देखने आये कोई ।
कौन है किस्सा यह गम जिसकी सुनाये कोई ।।
रो के हर एक से कहती है ये भारत माता ।

मुझको कमजोर समझकर न सताये कोई ।
फिर न बिस्मिल रहे दुनियां में कोई ऐ बिस्मिल ।
फिर न अजार जमाने के उठाये कोई ।।
1914 को क्रांति की असफलताओ के बाद बिस्मिल जी ने स्वयं
शाहजहांपुर में ‘’ भारत दुर्दशा नाटक में वह कविता पढ़ी और गाई जिसे सुनकर लोग रो पड़े -
‘’ देश की खातिर मेरी दुनियां,
में यह ताबीर हो ।
हाथ में हो हथकड़ी पैरो पड़ी जंजीर हो।
सूली मिले फांसी मिले,
या कोई भी तदवीर हों,
पेट में खंजर दुधारा या जिगर में तीर हो ।
आंख खतिर तीर हो मिलती गले शमशीर हो ।
मौत की रक्खी हुई आगे तस्वीर हो ।
इससे बढ़कर और दुनियां में अगर ताजीर हो ।
मंजूर हो! मंजूर हो !! भांकर हो !!! भांकर हो !!!
मै कहूॅगा फिर भी अपने देश का शैया हूॅ मैं ।
फिर करूंगा काम दुनियां में अगर पैदा हुआ ।।
और उन्होंने कवि के रूप में अपनी अन्तिम इच्छा व्यक्त की और लिखा है कि
बहे बहरे फना में जल्द गारब लाख बिस्मिल की ।
कि भूखी मछलियां है, जोर रहे शमशीर कातिल की ।
किन्तु समझकर फूंकना इसको जरा, ये दागे नाकामी ।
बहुत से घर भी है, आबाद इस उजड़े हुए दिल से ।।
बिस्मिल की दिले आरजू बिस्मिल में रह गई ।
तलवार खिचके पंज ए, कातिल में रह गई ।।
सर फरोशाने वतन फिर, देख लों मकतल में है।
मुल्क पर कुर्बान हो जाने, के अरमों दिल में है।
तेज है जालिम की यशादों, और गलामजलूम का ।
देख लेंगे हौंसला कितना दिले कातिल में है।
सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।
सौरे महशर वाक्यश है, मार का है धूम का ।
इस प्रकार एक क्रांतिकारी भारत माता से सपूत ने साहित्य सृजन सन्देश सेवा का काल पैदा किया और जाते-जाते कल्याणकारी सन्देशों को आजाद भारत के लिए ‘विरासत में दे गया । बिस्मिल जी जितने दक्ष रिवाल्वर चलाने में थे उतने ही वे अच्छे लेखक व कवि थे बिस्मिल जी ने ‘’सुशीला-माला प्रकशन को प्रारम्भ किया माला अपने बंगााली मित्र की स्मृति को पुस्तक लिखी और प्रकाशित हुई । श्री रामप्रसाद बिस्मिल को रचना में अज्ञात या राम के नाम से छपती और हम व्यक्ति उन्हे चाव से पढ़तें थे श्री अरविन्द घोष की बंगला पुस्तक यौगिक साधना का भी हिन्दी अनुवाद किया और यह प्रकाशक के द्वारा विश्वासघात करने के कारण प्रकाशित न हो सकी फिर उसके बाद बोलशैविकों की करतूत ‘मन की लहर आदि पुस्तकें काफी चर्चित रही, अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली, चीनी षडयन्त्र, आदि पुस्तकें काफी लोकप्रिय रही । कवि ने गोरखपुर की जेल में आत्म कथा लिखी जिसे उन्होंने अपने प्रिय मित्र श्री गणेश शंकर ने प्रकाशित कराई आत्म कथाओं में यह श्रेष्ठ आत्म-कथा है 30 वर्षीय युवा क्रांतिकारी भारत माँ का सपूत इसी चम्बल घाटी गांव बरबाई का जिसके परिवार जन स्व. कोकसिंह तोमर जो बिस्मिल जी के चचेरे भाई है तथा श्री बिसेन्द्र सिंह तोमर का भतीजा है। आज भी बरवाई में है। अमर शहीद को फांसी लगने के बाद उसके परिवार ने जो यातना और कष्ट सहे वह एक अलग कहानी है। किन्तु एक कवि, साहित्यकार और क्रांतिकारी शहीद पुण्य तिथि 19 दिसम्बर को हम इस महान सपूत को हम क्या दें पायेगें और आजादी के दीवानों के परिवार जनों की जो हालत है वह और भी चिन्तनीय है।
आयो मों वरदे तथा माँ भारती के सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें ।
अमर शहीद श्री रामप्रसाद बिस्मिल की बहिन शास्त्री देवी कोसवां जिला मैनपुरी ठाकुरों के यहॉ व्याही है । , जिनके पतिदेव का निधन जनवरी 1989 में हुआ इनके दो पुत्र है। हरिशचन्द्र जी कोसवा के पास छिरोड़ गॉव है जो जिला मैनपुरी में पड़ता है वह व्याहे है उनके ज्येष्ठ का लड़का श्री बाबूसिंह जो वर्तमान में परिवार के दायित्वों का संचालन करता हैं बिस्मिल जी की दूसरी बहिन ब्रह्मादेवी कुचैला जिला मैनपुरी में ब्याही है श्री रामप्रसाद बिस्मिल के पिता श्री मुरलीधर सिंह की पिनाहट के पास छदामी का पुरा में व्याहें है। तब बिस्मिल जी का मानना हैै जाधपुर में बिस्मिल जी के नाना एवं नानी जी का घर है जो परिहार ठाकुरों के नाम से जाना जाता है बिस्मिल जी के परिवार ने जब बरबाई गांव छोड़ा तब वे शाहजहांपुर चले गये परिवार की निर्धनता के कारण उन्होने अनेक स्थानो पर भटकने के बाद अपने आपको आर्य समाजी होने के कारण वे पंडित बिस्मिल को ख्याति से प्रसिद्धि प्राप्त की किन्तु मूल रूप से वे तोमर राजपूत ठाकुर थे और बारबाई गांव उस समय ग्वालियर राज्य में आता था। पुनश्च:दादी जी फिर कभी लौटकर मूल गॉव नहीं गई। नारायण लाल जी परिवार को पालने के लिए ब्राह्मण वृति करने लगे और परिवार का लालन-पालन जिसके कारण लोग इन्हें पंडित नारायणलाल जी कहने लगे। बड़ा पुत्र मुरलीधर पढ़लिखकर, पन्द्रह सोलह वर्ष का हुआ। तभी ननिहाल चले गए चार पॉच माह वहॉ रहे, वहॉ मुरलीधर का विवाह हुआ विवाह के पश्चात् फिर वह शाहजहांपुर आ गये। मुरलीधर नगर पालिका की नौकरी करने लगे उस समय उन्हें पन्द्रह रूपये की तनख्वाह थी। फिर उन्होंने स्वतंत्र व्यवसाय किया इस व्यवसाय के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।अपने परिवार की पूर्व स्थिति को सुधारने का सारा श्रेय मुरलीधर को ही जाता है। वह वास्तव में एक सपूत सिद्ध हुए। उन्होंने अपने माता-पिता की सारी कठिनाईयों को दूर कर दिया। वह अपने माता-पिता द्वारा उठाए गये कष्टों को भूले नहीं थे, इसी से उन्होंने सदा परिश्रम एवं ईमानदारी की शिक्षा ग्रहण की थी। संवत् 1953 में मुरलीधर के घर मं एक पुत्र ने जन्म लिया दुर्भाग्य से यह पुत्र जीवित न रहा।

जब मुरलीधर की पत्नी ने द्वितीय पुत्र को जन्म दिया तब वे मैनपुरी कोसवां (नुनाहारा) में ननिहाल में चले गए वहॉ ज्येष्ठ शुक्ला 11 सम्बत् 1954 सन् 1897 को पुत्र जन्म हुआ। यही बालक आगे चलकर प्रसिद्ध क्रांतिकारी अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

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